Bhangarh Fort | भानगढ़ का किला | भूतो की नगरी कसे बना वो किला जो कभी भानगढ़ का गौरव हुवा करता था |

Bhangarh Fort | भानगढ़ का किला | भूतो की नगरी कसे बना वो किला जो कभी भानगढ़ का गौरव हुवा करता था |
Bhangarh Fort | भानगढ़ का किला | भूतो की नगरी कसे बना वो किला जो कभी भानगढ़ का गौरव हुवा करता था |

भानगढ़ का किला अपने बर्बाद होने के इतिहास और रहस्यमयी घटनाओं के कारण मशहूर है. यह भारत के सबसे डरावने स्थानों में गिना जाता है. यहाँ तक कि पुरातत्व विभाग द्वारा भी सूर्योदय और सूर्यास्त के उपरांत किले में प्रवेश न करने के संबंध में चेतावनी जारी की गई है |

Bhangarh Fort | भानगढ़ का किला | भूतो की नगरी कसे बना वो किला जो कभी भानगढ़ का गौरव हुवा करता था |
भूतो की नगरी कसे बना वो किला जो कभी भानगढ़ का गौरव हुवा करता था |

1573 में निर्मित होने के उपरांत भानगढ़ का किला लगभग 300 वर्षों तक आबाद रहा. उसके बाद यह ध्वस्त हो गया. इसके ध्वस्त और उजाड़ होने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं, जो यहाँ के लोगों द्वारा सुनाई जाती हैं |


भानगढ़ किले का इतिहास (History Of Bhangarh Fort)

भानगढ़ किले का निर्माण 1573 में आमेर के महाराजा भगवंतदास ने करवाया था. उजाड़ होने के पूर्व यह किला लगभग 300 वर्षों तक आबाद रहा रहा.

महाराज भगवंतदास के कनिष्ठ पुत्र मानसिंह थे, जो मुग़ल बादशाह अकबर के नवरत्नों में सम्मिलित्त थे. उनके भाई माधो सिंह ने 1613 में इस किले को अपनी रिहाईश बना लिया.

उनके तीन पुत्र थे – सुजान सिंह, छत्र सिंह और तेज सिंह. माधोसिंह की मृत्यु के उपरांत भानगढ़ किले का अधिकार छत्र सिंह को मिला. छत्रसिंह का पुत्र अजबसिंह था.

अजबसिंह ने भानगढ़ को अपनी रिहाइश नहीं बनाया. उसने निकट ही अजबगढ़ बसाया और वहीं रहने लगा. उसके दो पुत्र काबिल सिंह और जसवंत सिंह भी अजबगढ़ में ही रहे, जबकि तीसरा पुत्र हरिसिंह 1722 में भानगढ़ का शासक बना.

हरिसिंह के दो पुत्र मुग़ल बादशाह औरंगजेब के समकालीन थे. औरंगजेब के प्रभाव में आकर उन दोनों ने मुसलमान धर्म अपना लिया था. धर्म परिवर्तन उपरांत उनका नाम मोहम्मद कुलीज़ और मोहम्मद दहलीज़ पड़ा. औरंगजेब ने इन दोनों को भानगढ़ की ज़िम्मेदारी सौंपी थी.औरंगजेब के शासन के उपरांत मुग़ल कमज़ोर पड़ने लगे, तब राजा सवाई जयसिंह ने मोहम्मद कुलीज़ और मोहम्मद दहलीज़ को मारकर भानगढ़ पर कब्ज़ा कर लिया |


भानगढ़ के खंडहर बनने का रहस्य | 

Bhangarh Fort | भानगढ़ का किला | भूतो की नगरी कसे बना वो किला जो कभी भानगढ़ का गौरव हुवा करता था |
भानगढ़ के खंडहर बनने का रहस्य | 


भानगढ़ के खंडहर बनने के संबंध में दो कहानियाँ प्रचलित है :

पहली कहानी : योगी बालूनाथ के श्राप की कहानी

पहली कहानी के अनुसार जहाँ भानगढ़ किले का निर्माण करवाया गया, वह स्थान योगी बालूनाथ का तपस्थल था. उसने इस वचन के साथ महाराजा भगवंतदास को भानगढ़ किले के निर्माण की अनुमति दी थी कि किले की परछाई किसी भी कीमत पर उसके तपस्थल पर नहीं पड़नी चाहिए.

महाराजा भगवंतदास ने तो अपने वचन का मान रखा, किंतु उसके वंशज माधोसिंह इस वचन की अवहेलना करते हुए किले की ऊपरी मंज़िलों का निर्माण करवाने लगे. ऊपरी मंज़िलों के निर्माण के कारण योगी बालूनाथ के तपस्थल पर भानगढ़ किले की परछाई पड़ गई.

ऐसा होने पर योगी बालूनाथ ने क्रोधित होकर श्राप दे दिया कि यह किला आबाद नहीं रहेगा. उनके श्राप के प्रभाव में किला ध्वस्त हो गया.

 

दूसरी कहानी : राजकुमारी रत्नावति और तांत्रिक सिंधु सेवड़ा की कहानी :

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भानगढ़ के खंडहर बनने का रहस्य | 
इस कहानी के अनुसार भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावति बहुत रूपवति थी. उसके रूप की चर्चा पूरे भानगढ़ में थी और कई राजकुमार उससे विवाह करने के इच्छुक थे.

उसी राज्य में सिंधु सेवड़ा नामक एक तांत्रिक रहता था. वह काले जादू में पारंगत था. राजकुमारी रत्नावति को देखकर वह उस पर आसक्त हो गया. वह किसी भी सूरत में राजकुमारी को हासिल करना चाहता था.

एक दिन राजकुमारी रत्नावति की दासी बाज़ार में उनके लिए श्रृंगार का तेल लेने गई. तब तांत्रिक सिंधु सेवड़ा ने तांत्रिक शक्तियों से उस तेल पर वशीकरण मंत्र प्रयोग कर रत्नावति के पास भिजवाया. उसकी योजना थी कि वशीकरण के प्रभाव से राजकुमारी रत्नावति उसकी ओर खिंची चली आयेंगी.

लेकिन राजकुमारी रत्नावति तांत्रिक का छल समझ गई और उसने वह तेल एक चट्टान पर गिरा दिया. तंत्र विद्या के प्रभाव में वह चट्टान तीव्र गति से तांत्रिक सिंधु सेवड़ा की ओर जाने लगी. जब तांत्रिक ने चट्टान से अपनी मौत निश्चित देखी, तो उसने श्राप दिया कि भानगढ़ बर्बाद हो जायेगा. वहाँ के निवासियों की शीघ्र मौत हो जायेगी और उनकी आत्माएं सदा भानगढ़ में भटकती रहेंगी. वह चट्टान के नीचे दबकर मर गया.

इस घटना के कुछ दिनों बाद ही भानगढ़ और अजबगढ़ में युद्ध हुआ और उस युद्ध में भानगढ़ की हार हुई. युद्ध उपरांत पूरा भानगढ़ तबाह हो गया. वहाँ के रहवासी मर गए, राजकुमारी रत्नावति भी बच न सकी. उसके बाद भानगढ़ कभी न बस सका.              

रहस्मयी घटनायें (Haunted Story Of Bhangarh Fort)

आज यह किला जीर्ण-शीर्ण स्थिति में उजाड़ पड़ा हुआ है. लोगों की माने तो यहाँ से रात में किसी के रोने और चिल्लाने की तेज आवाजें आते हैं. कई बार यहाँ एक साये को भी भटकते हुए देखने की बात कही गई है.

इन बातों में कितनी सच्चाई है, ये कोई नहीं जानता. लेकिन पुरातत्व शास्त्रियों ने भी खोज-बीन के बाद इस किले को असामान्य बताया है.

रहस्यमयी घटनाओं के कारण पुरातत्व विभाग द्वारा भानगढ़ किले को भुतहा घोषित कर दिया है. किले के प्रवेश द्वार पर उनके द्वारा बोर्ड लगाया गया है, जिसके अनुसार सूर्योदय और सूर्यास्त के उपरांत किले में प्रवेश वर्जित है.

भानगढ़ किले की संरचना (Bhangarh Fort Architecture)

भानगढ़ तीन ओर पहाड़ियों से घिरा हुआ है. इसके अग्र भाग में विशाल प्राचीर है, जो दोनों ओर पहाड़ियों तक विस्तृत है. प्राचीर के मुख्य भाग में हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है.

मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर बाज़ार प्रारंभ हो जाता है. बाज़ार की समाप्ति पर त्रिपोलिया द्वार बना हुआ है. त्रिपोलिया द्वार से राजमहल के परिसर में प्रवेश किया जा सकता है.

दर्शनीय स्थल (Places To Visit)

Bhangarh Fort | भानगढ़ का किला | भूतो की नगरी कसे बना वो किला जो कभी भानगढ़ का गौरव हुवा करता था |

दर्शनीय स्थल (Places To Visit)

भानगढ़ में कई दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें मंदिर (Temples) प्रमुख है. यहाँ स्थित मंदिरों की दीवारों 

और खंभों की नक्काशी बेहतरीन है, जो इन्हें भव्य बनाती है.

किले में स्थित प्रमुख मंदिर –

•     भगवान सोमेश्वर का मंदिर

•     गोपीनाथ का मंदिर

•     मंगला देवी का मंदिर

•     केशव राय का मंदिर

पूरा भानगढ़ खंडहर में तब्दील हो चुका है. लेकिन यहाँ के मंदिर सही-सलामत हैं. हालांकि मंदिरों में सोमेश्वर महादेव के मंदिर में स्थापित शिवलिंग को छोड़कर किसी भी मंदिर में मूर्तियाँ नहीं हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर में केवलतांत्रिक सिंधु सेवड़ा के वंशज की पूजा करते है.

दर्शनीय स्थल में सोमेश्वर महादेव के समीप स्थित बावड़ी भी है, जहाँ गाँव के लोग स्नान करते हैं. इसके अतिरिक्त ध्वस्त किले के अवशेष हैं.